“DPDP Act: डेटा सुरक्षा के नाम पर सरकार अब आपकी डिजिटल ज़िंदगी पर कब्जा करेगी?”

भारत में एक नया कानून आया है — डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP Act )। नाम में ही “प्रोटेक्शन” है, लेकिन इस कानून को पढ़कर जनता पूछ रही है — “सुरक्षा किसकी हो रही है? हमारी या सरकार की?”

सरकार कहती है कि अब आपकी निजी जानकारी कोई कंपनी, वेबसाइट या मोबाइल ऐप आपकी इजाजत के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकती। लेकिन इसी कानून में सरकार ने खुद को “छूट” दे दी — मतलब सरकार जब चाहे, बिना पूछे आपकी जानकारी ले सकती है और आप सवाल भी नहीं पूछ सकते। क्या यही है 21वीं सदी का लोकतंत्र?

DPDP Act

DPDP Act 2023 को संसद ने अगस्त 2023 में पास किया था और इसका उद्देश्य बताया गया कि अब किसी भी व्यक्ति की निजी डिजिटल जानकारी को बिना अनुमति के कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। यानी अगर कोई कंपनी, ऐप या सरकारी विभाग आपकी जानकारी जैसे नाम, पता, फोन नंबर, आधार नंबर, लोकेशन या हेल्थ डेटा का इस्तेमाल करना चाहता है, तो उसे आपकी अनुमति लेनी होगी।

क्या है DPDP Act और क्यों बना यह कानून?

कौन-कौन आ गया कानून के दायरे में?

अब इस कानून के तहत सभी कंपनियां, वेबसाइट्स, मोबाइल एप्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और यहां तक कि स्कूल, अस्पताल, बैंक और सरकारी विभाग भी आ गए हैं। इन्हें अब आपके डेटा को संभालने के लिए आपकी मंजूरी लेनी होगी और कोई गलती हुई तो जुर्माना भी भरना होगा।

सरकार ने कहा—”हम आपके डेटा की रक्षा करेंगे, ताकि कोई भी आपके निजी जीवन में दखल न दे सके।

लेकिन सवाल यह उठता है—क्या सच में ऐसा ही होगा?

सरकार को मिल गई ‘छूट’: बस यहीं से शुरू होता है शक

DPDP Act की सबसे ज्यादा चर्चा जिस बात को लेकर हो रही है, वो है इसमें दिया गया “सरकार को विशेष छूट” (Exemption)।

DPDP Act के अनुसार सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या संवेदनशील मामलों में लोगों का डेटा बिना अनुमति के भी एक्सेस कर सकती है। और खास बात ये है कि अगर सरकार कोई डेटा जुटाती है, तो उस पर RTI यानी सूचना के अधिकार के तहत सवाल नहीं पूछा जा सकता।

DPDP Act से जनता के मन में डर क्यों है?

  1. RTI कमजोर हुआ: अब आप RTI डालकर यह नहीं पूछ सकते कि आपका डेटा कैसे, कहां और क्यों इस्तेमाल हुआ।
  2. सरकारी एजेंसियों को आज़ादी: अब किसी भी सुरक्षा एजेंसी को यह छूट है कि वो बिना अनुमति के किसी का भी डेटा ले सकती है और कारण भी नहीं बताएगी।
  3. पेनल्टी कंपनियों के लिए, सरकार के लिए नहीं: अगर कोई कंपनी गलती करे तो उस पर जुर्माना है, लेकिन सरकार कोई गलती करे तो कोई जिम्मेदारी तय नहीं है।
  4. जनता को नहीं मिलेगा ‘डेटा फर्स्ट’ अधिकार: यूरोप में डेटा प्राइवेसी कानूनों में व्यक्ति को ज्यादा ताकत दी गई है, भारत में सरकार को ज्यादा।

अब एक आम नागरिक के तौर पर आप सोचिए—एक तरफ सरकार कहती है कि आपकी जानकारी सुरक्षित है, और दूसरी तरफ कहती है कि वो चाहे तो बिना पूछे आपकी जानकारी ले सकती है और आप उसे सवाल भी नहीं कर सकते!

सरकार क्या कहती है?

सरकार का दावा है कि यह कानून लोगों की प्राइवेसी की रक्षा के लिए बना है और इससे ‘डेटा चोरी’, ‘स्पैम कॉल्स’, ‘फर्जी लिंक’, और ‘फिशिंग’ जैसे अपराधों पर रोक लगेगी। इसके अलावा कंपनियां अब किसी के डेटा को बेच नहीं सकेंगी।

लेकिन आम जनता का सवाल है—अगर वाकई ये कानून सुरक्षा के लिए है, तो सरकार खुद को इससे अलग क्यों कर रही है?

क्या यह लोकतंत्र के खिलाफ है?**

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां हर नागरिक को सरकार से सवाल पूछने का हक है। लेकिन DPDP Act के बाद लगता है कि सरकार खुद को सवालों से बचा रही है। RTI के तहत पूछे गए सवालों का जवाब ना देना, और डेटा पर गोपनीयता की दीवार खड़ी करना, लोकतंत्र की आत्मा पर सवाल उठाता है।

अब आगे क्या? जनता क्या कर सकती है?

  • सजग रहना: आपको समझना होगा कि कौन-कौन सी वेबसाइट और ऐप्स आपकी जानकारी मांग रही हैं और क्यों।
  • सवाल पूछते रहना: RTI कमजोर हो सकता है, लेकिन लोकतंत्र में जनता की आवाज सबसे मजबूत होती है। सोशल मीडिया, जनआंदोलन और प्रेस के ज़रिए सवाल पूछना ज़रूरी है।
  • लोकसभा चुनाव 2029 में ध्यान रखना: ऐसे कानूनों को देखकर आप यह तय कर सकते हैं कि अगली बार वोट देते वक्त कौन आपके हित में सोचता है।

DPDP Act: क्या यह “डेटा की रक्षा” है या “निगरानी का नया यंत्र”?

DPDP Act एक ऐसी तलवार है जो दोनों तरफ धार रखती है। जहां एक ओर यह आपके डेटा को कंपनियों से बचा सकता है, वहीं दूसरी ओर सरकार को आपको बिना बताये ट्रैक करने की पूरी छूट देता है। अब फैसला आपको करना है

यह कानून जनता को सुरक्षा नहीं देता, बल्कि सरकार को जनता की डिजिटल निगरानी का खुला लाइसेंस देता है।

सवाल यह नहीं है कि “आपके पास छिपाने को क्या है?”
सवाल यह है कि “सरकार को छिपाने की इतनी छूट क्यों दी जा रही है?”

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