Kesari 2 को सेंसर बोर्ड से एडल्ट सर्टिफिकेट: जब भी अक्षय कुमार का नाम सामने आता है, दिमाग में सबसे पहले पारिवारिक और सामाजिक संदेश देने वाली साफ-सुथरी फिल्मों की छवि बनती है।
ऐसे में जब Kesari 2 को सेंसर बोर्ड से एडल्ट सर्टिफिकेट मिला, तो हर किसी के मन में एक ही सवाल उठा — क्या अक्षय ने अब ट्रैक बदल दिया है? लेकिन जैसे ही आप थिएटर में जाकर फिल्म का पहला सीन देखते हैं, आप समझ जाते हैं कि ये कोई साधारण फिल्म नहीं, बल्कि एक सिनेमैटिक जंग है।
Kesari 2: नाम वही, कहानी नई;
केसरी के पहले भाग से इस फिल्म का कोई सीधा संबंध नहीं है। हां, नाम के पीछे ‘2’ लगाकर पहले कुछ दर्शकों को ऐसा लगा कि यह सिर्फ पैसा कमाने की चाल है। लेकिन फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, दर्शको को समझ आता है कि ये फिल्म केसरी नहीं, बल्कि आत्मा से निकली हुई चीत्कार है। जलियांवाला बाग के दर्द को, उसकी राजनीति को, और उसके पीछे के सच को जितनी बेबाकी से Kesari 2 दिखाती है, उतनी हिम्मत शायद ही किसी फिल्म ने की हो।
Kesari 2: खून, खामोशी और कानून;
फिल्म की शुरुआत होती है 1650 लाशों के ढेर से, जिनमें से एक छोटे से बच्चे का हाथ बाहर आता है। उसकी आंखों में मां की मौत और बहन की लाश का दर्द है। इसी हादसे से जन्म लेती है एक ऐसी कहानी, जो ब्रिटिश इंडिया में कानूनी इतिहास लिखने जा रही है।
ब्रिटिश सरकार का वो लॉयर, जिसने कभी केस नहीं हारा, जब अपने ही हक के लिए, अपने ही खिलाफ खड़ा होता है, तो कोर्ट रूम सिर्फ बहस का मैदान नहीं रह जाता, वह क्रांति का मंच बन जाता है।
कोर्ट रूम में जंग, कैमरे के सामने अभिनय,
Kesari 2 को कोर्ट रूम ड्रामा कह देना इसकी गहराई को कम आंकना होगा। यह फिल्म न केवल सवाल उठाती है, बल्कि जवाब भी देती है — वो भी बड़े तर्क और दम के साथ। अक्षय कुमार का किरदार एक दमदार लॉयर का है, जिसकी एंट्री ही सीटियाँ बटोर लेती है। लंबे समय बाद अक्षय अपने कंटेंट कुमार वाले अंदाज़ में लौटे हैं और हर एक सीन में उनकी मौजूदगी असर छोड़ती है।
लेकिन फिल्म को एकतरफा बनाना निर्देशक करण सिंह त्यागी का मकसद नहीं था। आर. माधवन फिल्म में अक्षय के बराबर ठहरते हैं। कम बोलते हैं लेकिन जो बोलते हैं, वो दिल और दिमाग दोनों पर असर डालते हैं। दोनों किरदारों की भिड़ंत कोर्ट में नहीं, सोच में होती है। और ये भिड़ंत देखने लायक है।
दमदार निर्देशन, ज़बरदस्त प्रेजेंटेशन;
ये करण सिंह त्यागी की डेब्यू फिल्म है, लेकिन ऐसा कतई नहीं लगता। खुद एक वकील होने के कारण उन्होंने कोर्ट रूम की असलियत को बड़े पर्दे पर बिल्कुल वैसे ही रखा है जैसे वो होती है। कोई फालतू मसाला नहीं, कोई एक्स्ट्रा ड्रामा नहीं — बस सच्चाई, बहस और न्याय की गूंज।
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर, कोर्ट रूम के संवाद और छोटे-छोटे ट्विस्ट इसे एक इंटेलिजेंट थ्रिलर में बदल देते हैं। यह केवल इतिहास की घटनाओं को दोहराती नहीं, उन्हें जिंदा करती है।
क्या यह फिल्म सभी के लिए है?
केसरी 2 को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म हर किसी के लिए नहीं है। अगर आप हल्का-फुल्का मसाला सिनेमा ढूंढ रहे हैं तो यह फिल्म शायद आपके लिए नहीं। अगर ।
Kesari 2 को सेंसर बोर्ड से एडल्ट सर्टिफिकेट (A Certificate) इसलिए मिला क्योंकि फिल्म में कुछ ऐसे ग्राफ़िक, भावनात्मक और संवेदनशील दृश्य हैं जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं माने गए।आप सोचने वाले दर्शक हैं, जो सिनेमा से सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक अनुभव चाहते हैं — तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी

केसरी 2 सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह एक आइना है — जिसमें हम इतिहास को, न्याय को और अपने नजरिए को देखते हैं। इसे सिर्फ मनोरंजन की तरह देखना, इस फिल्म की गहराई को नजरअंदाज़ करना होगा।
अगर आप सिनेमा से कुछ महसूस करना चाहते हैं — तो इस फिल्म को थिएटर में जाकर ज़रूर देखें। और याद रखें, ये सिर्फ कहानी नहीं, एक मुकदमा है — जो आपके सोचने के अंदाज़ पर चलाया गया है।